भारत में अभी तक क्रिकेट बेटिंग को लीगल नहीं किया गया है लेकिन फिर भी यहां पर बेटिंग करने वालों की संख्या काफी अधिक है। इसके साथ ही साथ कई सारे बुकमेकर ग्रे मार्केट में बेटिंग का को ऑपरेट करते हैं। हालांकि भारत में बेटिंग को लेकर कोई कड़ा कानून नहीं है जिसके चलते ग्रे मार्केट काफी तेजी से फल-फूल रहा है। यहां पर हम आपको बताएंगे कि भारत के ग्रे मार्केट में बेटिंग कैसे ऑपरेट होता है?
कुछ रिपोर्ट्स की माने तो भारत के ग्रे मार्केट में हर साल बेटिंग से लगभग 100 बिलियन डॉलर की आय प्राप्त होती है। इसके साथ ही साथ लगभग हर आईपीएल मैच में लगभग 20 से 30 हजार करोड़ का टर्न ओवर होता है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रे मार्केट में बेटिंग की मांग कितनी अधिक है। इसीलिए समय-समय पर भारत में क्रिकेट बेटिंग को लीगल करने की मांग बढ़ती रही है ताकि अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके और सभी बुकमेकर लीगल तरीके से काम कर सकें।
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भारत के ग्रे मार्केट में बेटिंग कैसे ऑपरेट होता है?
भारत के ग्रे मार्केट में बेटिंग ऑपरेट करने का सबसे पॉपुलर तरीका फोन के जरिए कॉल करके बेट लगाने का होता है। इसके अलावा कई सारे भारतीय बुकमेकर पंटर को एक आईडी मुहैया कराते हैं और उसमें बैलेंस डालकर देते हैं। वे अपने ग्राहकों को लुभाने के लिए 10% से 20% अतिरिक्त बोनस भी दिया करते हैं। विदेशी बुकमेकर साइट्स से तुलना करें तो वहां पर आप खुद से अपना अकाउंट रजिस्टर कर सकते हैं और खुद से पैसे जमा करके बेटिंग शुरू कर सकते हैं जबकि भारत के बुकमेकर में ऐसा नहीं है।
बेटिंग से संबंधित कानूनों के अनुसार भारत में बेटिंग ऑफिस बनाना गैरकानूनी है, जबकि विदेशी साइट्स पर ऑनलाइन बेटिंग पर कोई रोक नहीं है। लेकिन फिर भी ऑनलाइन साइट्स के मुकाबले पंटर ग्रे मार्केट में बेटिंग करते हैं। देश में Reddy Anna, KarnaBook जैसे बुक मेकर ऑनलाइन बेटिंग करने की सुविधा देते हैं और ये गैरकानूनी तरीके से पूरे देश भर में काम करते हैं।
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भारत में ग्रे मार्केट में बेटिंग 2 तरीके से ऑपरेट की जाती है:
1. फोन लाइन के द्वारा:
इस प्रक्रिया में पंटर किसी बुकी से सम्पर्क करता है और कुछ पैसे जमा करके बेट लगाने की लिमिट लेता है। इसके बाद वह मैच के दौरान बुकी नम्बर पर कॉल करके अपना मनपसंद बेट लगाता है। अक्सर इसमें पैसे का हिसाब और लेनदेन अगले दिन मैच शुरू होने से पहले तक किया जाता है।
इसमें बुकी खुद फोन लाइन लेता है और किसी बड़े बुकी से सम्पर्क में होता है। इस दौरान उनका फोन लाइन चलता रहता है और उसमें हर गेंद के बाद सेशन और ऑड्स (मैच का भाव) बोलता रहता है। बुकी इस भाव में अपना मार्जिन सेट करके यानी भाव को थोड़ा बढ़ाकर बोलता है ताकि उसे एक निश्चित लाभ मिल सके। बुकी जिस जगह से लाइन लेता है वहां भी उसको लिमिट मिली रहती है और वह एक निश्चित सीमा में खुद भी बेटिंग कर सकता है, ताकि उसे लाभ मिल सके या वह अधिक नुकसान से बच सके।
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2. ऑनलाइन वेबसाइटों के द्वारा:
पंटर की सुविधा के लिए बुकी अपनी खुद की एक ऑनलाइन वेबसाइट ऑपरेट करता है, जो विदेशी बुकमेकर से मिलते जुलते रहते हैं, इन्हें बेटिंग एक्सचेंज कहा जा सकता है। इसमें मैच के दौरान भाव और सेशन के साथ साथ उससे सम्बंधित मार्केट दिखते रहते हैं। हालांकि इसमें पंटर उतने लिमिट का ही बेट लगा सकता है, जितना उसके बेटिंग अकाउंट में बैलेंस हो।
इसमें पंटर को किसी बुकी से सम्पर्क करके एक बेटिंग आईडी लेनी पड़ती है। इसके बाद उसे एक वेबसाइट दी जाती है, जिसमें वह उस आईडी को लॉगिन करता है। इसके बाद बुकी को पैसे भेजकर उसमें कॉइंस (बैलेंस) क्रेडिट करना होता है। बैलेंस क्रेडिट हो जाने के बाद आप उस लिमिट तक बेट लगा सकते हैं। जीत की राशि निकालने के लिए पंटर को अपने बुकी से सम्पर्क करना होता है और उन्हें अपने बैंक से सम्बंधित जानकारी देनी होती है। इसके बाद उसी अकाउंट में बुकी द्वारा पैसे भेज दिए जाते हैं।